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वीडियो जानकारी: 29.08.23, अष्टावक्र गीता सत्र, गोवा
प्रसंग:
नात्मा भावेषु नो भावस्तत्रानन्ते निरञ्जने।
इत्यसक्तोऽस्पृहः शान्त एतदेवाहमास्थितः॥
ना आत्मा शरीर में है, ना शरीर का अनन्त और निरंजन आत्मा से कोई सम्बन्ध है।
आत्मा अनासक्त है, निःस्पृह (कामनारहित) है, शांत है , इसी में मैं स्थित हूँ।
~ अष्टावक्र गीता 7.4
~ क्या हमारे शरीर में आत्मा होती है?
~ क्या बुरी आत्माएँ भी होती हैं?
~ क्या शरीर में देवी-देवता प्रवेश कर सकते हैं?
~ आत्मा और शरीर अलग-अलग होते हैं?
~ क्या हमारी आत्मा किसी और के शरीर में जा सकती है?
संगीत: मिलिंद दाते
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